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स्थायी दांत की संख्या

1.स्थायी दांत की संख्या

(1) स्थायी दांत

वास्तव में मनुष्य के शरीर में अस्थायी दांत बनने की क्रिया जब शिशु मा के गर्भ में होता है तभी प्रारंभ हो जाती है। जन्म के बाद 6-9 वे माह के अन्दर बच्चे के दांत निकलने प्रारंभ होते है। ये अस्थायी दांत 6 वर्ष की उम्र से टूटने प्रारंभ हो जाते है। 12वर्ष की उम्र तक टूटते है तथा नये स्थायी दांत निकलते आते है। करीब 25 वर्ष की उम्र तक सब स्थायी दांत निकल आते है। ये दांत जबड़ों में जमे रहते रहते हैं। ऊपर का जबड़ा अचल होता है, जबकि नीचे का जबड़ा चल होता है।

(2) स्थायी दांत

6-7 वर्ष की उम्र से स्थायी दांत निकलने शुरू होते है। 12 वर्ष की उम्र तक 24 स्थायी दांत आते है - ऊपर के जबड़े में 12 नीचे के जबड़े में। पीछे की 4 दांडे 25 वर्ष की उम्र तक आ जाती है। इस प्रकार कुल 32 दांत - 16 के जबड़े में तथा 16 के जबड़े में होते है।

स्थायी दांत 4 प्रकार के होते है-

(1) छेदक या काटने वाले दांत

ये दांत गिनती में 8 होते है- चार ऊपर चार नीचे वाले जबड़े में। ये सामने की ओर बीच में होते है। ये चपटे तथा तेज धार वाले होते है। ये भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े करते हैं।

(2) भेदक या फाड़ने वाले दांत

ये गिनती में कुल चार होते है- दो ऊपर दो नीचे के जबड़े में। ये छेदक के दोनो ओर एक- एक होते है। ये भोज्य पदार्थों को फाड़ने का काम करते है।

(3) अग्र चवर्णक दांत या कुचलने वाले दांत

ये भी गिनती में कुल 8 होते है - ऊपर 4 नीचे। फाड़ने वाले दांतो के दोनों ओर दो-दो कुचलने वाले दांत होते हैं। ये भोजन को कुचल कर छोटे-छोटे टुकडों में तोङं देते हैं। ये ऊपर से चौडे़ और चौकोर होते है। 

(4) चवर्णक या पीसने वाले दांत

ये गिनती मे 12;6 ऊपर तथा 6 नीचे के जबड़े में होते है- ऊपर नीचे दोनों ओर अग्र चवर्णक के बाद 3,3 होते है। ये भोजन को कुचल कर छोटे-छोटे टुकडों में तोड देते है। ये दांत ऊपर से चौडे़ होते है। 
ऊपरी तथा नीचे के जबड़े में आखिर में एक दांत (डाढ़) होती है, जिसे अक्ल डाढ़  कहते है। यह 21 वर्ष की उम्र के बाद निकलती है। आवश्यक नही कि हर व्यक्ति के अक्ल डाढ़ निकले। 

दांत की रचना- 

                         दांत की रचना का अध्ययन दो प्रकार से किया जाता है-

1.आन्तरिक रचना - 

                                        आन्तरिक रचना के अनुसार दांत के तीन भाग होते है-

(1) दन्तवल्क 

दांतो के ऊपर , बाहर की ओर एक पतली, बहुत कठोर तथा सफेद रंग की पर्तो होती है। इसे ही दन्तवल्क या दन्तवेष्ट धातु कहते है।

(2) जन्तु धातु

दन्तवेष्ट के ऊपर एक हड्डी से भी कड़ी पीले रंग की मोटी परत होती है, इसे दन्त धातु कहते है।

(3) दन्त कोष्ठ - 

दन्त धातु के भीतरी खाली भाग को दन्तकोष्ठ कहते है। यह भाग दांत का सजीव भाग होता है। इसमें रक्त कोशिकाएं, तन्त्रिकाए होती हैं।

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